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नोटों के मायाजाल में उलझे भाजपाई नेता भूले अवाम के दु:खदर्दों को!

देश में फिर नोट और वोट बटोरने की भाजपाई मुहिम परवान चढऩे लगी है। एक तरफ सरदारवल्लभ भाई पटेल का स्टेच्यू ऑफ यूनिटी लगाने के लिये लोहा और नोट मांगे जा रहे हैं, वहीं मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिये नोट मांगने के साथ-साथ भाजपा को नोट और वोट देने के लिये भी मुहिम परवान पर है। कुल मिला कर आरएसएस समर्थित भाजपा नोट बटोरने के लिये सारे हथकण्डे अपना रही है। वैसे कार्पोरेट जगत ने अपना खजाना भाजपा के लिये पहिले से ही खोल रखा है।
राजस्थान में जहां आम अवाम मंहगाई, बेरोजगारी ओर भ्रष्टाचार के साथ-साथ जमाखोरों, मुनाफाखोरों, कालाबाजारियों, भू-माफियाओं की करतूतों से हैरान और परेशान है, राज्य की वसुन्धरा राजे सरकार आगामी लोकसभा चुनावों में प्रदेश की 25 में से 25 सीटें जीतने के लिये जुगत बैठाने में जुटी है। 163 सीटों के साथ राज्य विधानसभा में दो तिहाई से ज्यादा बहुमत से सत्तासीन भाजपा की वसुन्धरा राजे सरकार ने सत्ता में आने के साथ ही अवाम के दु:खदर्दों से लगभग नाता तोड़ लिया है। पिछले एक महिने से वसुन्धरा राजे सरकार 11 सूत्रीय 60 दिवसीय कार्ययोजना बनाने में जुटी है जिसके जरिये वह आगामी लोकसभा चुनावों में राज्य की 25 सीटों पर कब्जा जमा सके। लेकिन मंहगाई और भ्रष्टाचार से पीडि़त राज्य की जनता को राहत पहुंचाने के बारे में इस कार्ययोजना या फिर मंत्रीमण्डल की पिछले दिनों हुई दूसरी बैठक में एक शब्द भी न तो बोला गया और न ही लिख गया। बिजली की दरों में कटौती राजस्थान की जनता का अहम मुद्दा है, लेकिन यह मुद्दा भी अवाम के लिये दिवास्वप्र से ज्यादा कुछ भी नजर नहीं आता है। भ्रष्टाचारियों, जमाखोरों, कालाबाजारियों पर शिकंजा नहीं कसने की तो शायद भाजपानीत वसुन्धरा राजे सरकार ने कसम ही खा ली है। सादगी और मितिव्यता का पाखण्ड भी उजागर होता जा रहा है। भरतपुर में राज्य केबीनेट की बैठक का सीधा-साधा अर्थ है, सरकारी खजाने पर मोटा भार! अवाम के गाढे पसीने की कमाई को पानी की तरह बहाने का यह तरीका अवाम को किस तरह मंहगाई की विभीषिका से बचायेगा, बतायेंगी मुख्यमंत्री!
अब अवाम को साफ-साफ समझ में आने लगा है कि राजस्थान में भाजपा सिर्फ सत्ता में चिपके रहने और केंद्र में सत्ता हथियाने के लिये ही जोड़तोड़ में जुटी है और उसे आम अवाम के दु:खदर्दों से कोई लेना देना नहीं है।

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