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राजस्थान में अवाम रहेगा नजरन्दाज और होगी रथ यात्राओं की धूम!

जयपुर (ओएनएस) भारतीय जनता पार्टी की चुनावी मैराथन बैठक में तैय किया गया है कि आगामी 10 फरवरी से प्रदेश में सुराज यात्रा के नाम से चुनावी रथ यात्रा होगी। हर लोकसभा क्षेत्र में दो रथ 10 फरवरी से 30 मार्च या आचार संहिता लागू होने तक घूमेंगे! इन रथों में स्थानीय स्तर पर के कार्यकर्ताओं के साथ-साथ प्रदेश स्तर का एक वक्ता भी होगा, जो पार्टी की विचारधारा तथा क्रियाकलापों की जानकारी आम अवाम को देगा। इन वक्ताओं को मुखर बनाया जायेगा, ताकि वे विपक्ष पर तीखा प्रहार करने में सक्षम हो सके।
भाजपा लोकसभा सीट वाइज संसदीय सम्मेलनों का भी आयोजन करेगी। आगामी 21 फरवरी से 30 मार्च तक होने वाले इन सम्मेलनों में बूथ स्तर तक के कार्यकर्ता मौजूद रहेंगे और इन सम्मेलनों को मुख्यमंत्री और प्रदेशाध्यक्ष वसुन्धरा राजे खुद सम्बोधित करेंगी।
उधर जयपुर में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश मुख्यालय पर लगने वाले जनता दरबारों को विराम दे दिया गया है। पार्टी मुख्यालय पर अब सिर्फ भाजपा कार्यकर्ताओं की ही सुनवाई होगी और मंत्री अब आम अवाम की सुनवाई अपने बंगलों पर करेंगे या फिर अपने प्रभार वाले जिलों में करेंगे।
भाजपा से जुड़े विश्वस्त सूत्रों ने ऑब्जेक्ट को बताया कि इस समय राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ और इनसे जुड़े संगठनों के पदाधिकारियों और भाजपा के चुनिंदा जनप्रतिनिधियों तथा नेताओं का एकमात्र लक्ष्य राजस्थान से लोकसभा की 25 सीटों पर कब्जा करना है। भाजपा नेताओं का यह सोच है कि जनता के लिये काम करने हेतु हमारे पास अगले विधानसभा चुनावों तक पांच साल पड़े हैं और हमारे रास्ते में किसी तरह की कोई चुनौती भी नहीं है। अत: इस वक्त हमें अपनी पूरी ताकत लगा कर राज्य में ज्यादा से ज्यादा लोकसभा सीटों पर जीत हांसिल करना है। जनता के दु:खदर्द तो बाद में भी देख लिये जायेंगे!
उधर कांग्रेस आलाकमान ने सचिन पायलट को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त कर हताश-निराश कांग्रेसजनों में जोश फूंकने का प्रयास किया है। लेकिन राजस्थान में भाजपा की अनपेक्षित जीत से कांग्रेसी नेताओं के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही है और अच्छी खासी तादाद में नेता लोकसभा चुनावों में उम्मीदवारी से परहेज करने की कोशिश में जुटे हैं। कांग्रेसियों का अब मानना है कि अशोक गहलोत की रणनीति ही हकीकत में कांग्रेस को भारी पड़ी। लेकिन अब पछताये क्या होत!
लाल झण्डेवाले भी अपनी अप्रत्याशित हार के घाव सहलाने में जुटे हैं। उनके पास लोकसभा चुनावों में सशक्त उम्मीदवार खड़ा करने के लिये कोई एक सीट भी नहीं है।
कुल मिला कर सभी राजनैतिक पार्टियां चुनावी सरगर्मियों में जुटी है, कोई जरूरत से ज्यादा जोश में है, तो कोई अपने घावों पर महरम लगाने में जुटी है। लेकिन एकबात साफ हो गई है कि सत्तारूढ़ पार्टी अवाम के दु:खदर्दों को, जिनके सहारे वह चुनाव जीती है, भूल गई है, वही आज विपक्ष में बैठी राजनैतिक पार्टियों के पास अवाम के बीच जाने की हिम्मत भी खत्म हो गई है। अब तो बस मौला ही जाने क्या होगा?

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