राजस्थान विधानसभा का संक्षिप्त पहला सत्र चल रहा है। सत्तारूढ़ दल और विपक्ष के तेवर तीखे हैं। सत्तापक्ष के विधायकों का शायद यह सोच है कि वे बहुमत की ताकत पर अल्प संख्या वाले विपक्ष पर अपना दबदबा कायम कर लेंगे। लेकिन ऐसा नजर नहीं आ रहा है। नतीजन गत दिनों जिस प्रकार की भाषा का सदन में प्रयोग हुआ और उस सारे प्रकरा को सदन की कार्यवाही से अध्यक्ष ने निकालने का निर्देश दिया, वह स्पष्ट इंगित करता है कि बेशक विपक्ष अल्पसंख्या में है, लेकिन उसके तेवर तीखे ही रहेंगे। विपक्ष संख्या में कम होने और विपक्ष में कुछ नये चेहरे, जिन्हें संसदीय कार्यों का अनुभव नहीं होने के बावजूद भी अपने तेवर तीखे ही रखने के मूड में नजर आ रहा है।
एक बात ओर! आगामी अप्रेल-मई में लोकसभा चुनावों के मद्देनजर पक्ष और विपक्ष राज्य में अपनी साख कायम करने की जुगत बैठाने में जुटा है, लेकिन इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि जनता द्वारा चुनिंदा जनप्रतिनिधि सदन और सदन के बाहर आम अवाम की दु:ख तकलीफों के मुद्दों को कितनी ताकत से उठा रहा है, जनता उसे गौर से देख-समझ रही है। वैसे भाजपा को इस मुगालते में नहीं रहना चाहिये कि विधानसभा चुनावों में जितना अच्छा प्रदर्शन उसने किया है, उतना अच्छा प्रदर्शन लोकसभा चुनावों में भी वह कर ले! विधानसभा चुनावों में राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के स्वंयसेवकों ने जिस तरह से काम किया था, इस बार लोकसभा चुनावों में वे अपने कार्य का प्रदर्शन कर पायेंगे या नहीं यह भी देखने की बात है, वहीं सत्तारूढ़ दल होने का नुकसान भी इस बार भाजपा को ही उठाना होगा, क्योंकि मंहगाई, कालाबाजारी, जमाखोरी और मुनाफाखोरी से अवाम को राहत पहुंचाने का कोई वीजन भाजपा नहीं दे पाई है। वहीं भूमाफिया, बिल्डर माफिया की करतूतों से त्रस्त अवाम को भी वसुन्धरा राजे सरकार राहत दिलाने में असफल रही है!
विधानसभा चुनावों में मिली करारी हार के सदमें से प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के आला नेता अभी तक नहीं उबर पाये हैं। यही नहीं आज भी कांग्रेस के नेता विधानसभा चुनावी हार से सबक लेकर एकजुट होते नजर नहीं आ रहे हैं। अगर अपनी-अपनी ढ़पली-अपना अपना राग की उनकी हरकतों को विराम नहीं लगा तो फिर कांग्रेस का लोकसभा चुनावों में पाटिया साफ होना सुनिश्चित है। अब तो देखना यही है कि वे मिशन 15 में कामयाब होते हैं या फिर सिफर पर सिमटते हैं।
एक बात ओर! आगामी अप्रेल-मई में लोकसभा चुनावों के मद्देनजर पक्ष और विपक्ष राज्य में अपनी साख कायम करने की जुगत बैठाने में जुटा है, लेकिन इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि जनता द्वारा चुनिंदा जनप्रतिनिधि सदन और सदन के बाहर आम अवाम की दु:ख तकलीफों के मुद्दों को कितनी ताकत से उठा रहा है, जनता उसे गौर से देख-समझ रही है। वैसे भाजपा को इस मुगालते में नहीं रहना चाहिये कि विधानसभा चुनावों में जितना अच्छा प्रदर्शन उसने किया है, उतना अच्छा प्रदर्शन लोकसभा चुनावों में भी वह कर ले! विधानसभा चुनावों में राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के स्वंयसेवकों ने जिस तरह से काम किया था, इस बार लोकसभा चुनावों में वे अपने कार्य का प्रदर्शन कर पायेंगे या नहीं यह भी देखने की बात है, वहीं सत्तारूढ़ दल होने का नुकसान भी इस बार भाजपा को ही उठाना होगा, क्योंकि मंहगाई, कालाबाजारी, जमाखोरी और मुनाफाखोरी से अवाम को राहत पहुंचाने का कोई वीजन भाजपा नहीं दे पाई है। वहीं भूमाफिया, बिल्डर माफिया की करतूतों से त्रस्त अवाम को भी वसुन्धरा राजे सरकार राहत दिलाने में असफल रही है!
विधानसभा चुनावों में मिली करारी हार के सदमें से प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के आला नेता अभी तक नहीं उबर पाये हैं। यही नहीं आज भी कांग्रेस के नेता विधानसभा चुनावी हार से सबक लेकर एकजुट होते नजर नहीं आ रहे हैं। अगर अपनी-अपनी ढ़पली-अपना अपना राग की उनकी हरकतों को विराम नहीं लगा तो फिर कांग्रेस का लोकसभा चुनावों में पाटिया साफ होना सुनिश्चित है। अब तो देखना यही है कि वे मिशन 15 में कामयाब होते हैं या फिर सिफर पर सिमटते हैं।





