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खरतरगच्छ संघ जयपुर गई भैंस पानी में!

जयपुर (ओएनएस) एक आम कहावत है कि 'गई भैंस पानी में'! इस कहावत का अर्थ साधारण सा इन्सान भी जानता है, लेकिन जयपुर के खरतरगच्छ समाज पर येन केन प्रकेरण अपना कब्जा जमाये रखने के लिये अघोषित रूप से अपने पुछल्लों की जो टीम 'ए' और टीम 'बी' खरतरगच्छ समाज के कुछ सेठों ने बना रखी है, इन टीमों के प्यादों को इस कहावत का अर्थ क्यों समझ में नहीं आता है, यह खरतरगच्छ समाज के समाज बंधुओं की समझ से भी परे है!
श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ के गत 22 दिसम्बर को हुए चुनावों के लिये संचेती ग्रुप ने एकता, सहयोग, विश्वास और दायीत्व के अपने घोष के साथ चुनाव लड़ा था। अपने चुनावी पर्चे में इस ग्रुप ने साधर्मी बंधुओं, आइये विचार करें, कृपया सोचें, आज आवश्यकता है, ऐसा सम्भव है, हम चाहते हैं, जैसे जुमलों की आड़ लेकर चुनावों में कार्यकारिणी के 15 सदस्यों के पद जीते थे। वहीं दूसरे ग्रुप कार्यकर्ता ग्रुप ने कार्यकारिणी के 11 सदस्यों के पद जीते! हालांकि इस ग्रुप ने समाज में अपने कार्य करने के मुद्दों पर कोई एजेण्डा नहीं रखा था। क्योंकि इनके पास कहने को कुछ था ही नहीं!
लेकिन दोनों ही ग्रुपों ने अपना अघोषित एजेण्डा आखीरकार चुनावों के बाद उजागर कर ही दिया है। सेठों की टीम 'ए' (संचेती ग्रुप) ने कुशलचंद सुराना, श्रीमती आशा गोलेछा, विजय संचेती सहित पांच लोगों के सहवरण का दावा प्रस्तुत किया है। वहीं टीम 'बी' (कार्यकर्ता ग्रुप) ने निर्मल पूंगलिया, विजय मेहता, माणकचंद गोलेछा, राजेन्द्र कुमार छाजेड सहित पांच लोगों के सहवरण का दावा ठोका बताया जाता है। फैसला आगामी 5 जनवरी को समाज के कुछ धनिक करेंगे जिनके लिये बताया जा रहा है कि कि वे शहर से बाहर हैं! और वे ही दोनों टीमों के बीच समझौता कराने का रोल अदा करेंगे। इन धनिकों के रोल पर तो एक पुरानी कहावत चरितार्थ होती है कि दो बिल्लियों की लड़ाई में बंदरमामा की पो बारह पच्चीस!
संचेती ग्रुप हो या फिर कार्यकर्ता ग्रुप, दोनों ही ग्रुपों से सवाल पूछा जाना चाहिये कि कुशलचंद सुराना, श्रीमती आशा गोलेछा, श्रीमती निर्मला पूंगलिया, विजय मेहता, माणक गोलेछा, राजेन्द्र कुमार छाजेड और विजय संचेती जैसे लोगों के सहवरण के पीछे उनकी मंशा क्या है? क्या चुनिन्दा कार्यकारिणी के पदधिकारी इस काबिल नहीं हैं कि वे समाज के संगठन खरतरगच्छ संघ की गतिविधियों को पदाधिकारी एवं कार्यकारिणी सदस्य के रूप में सक्षमता से सम्भाल सकें? अगर नहीं तो इस्तीफा दें ताकि उनसे ज्यादा काबिल लोग आ सकें! सवाल यह भी उठता है कि क्या खरतरगच्छ समुदाय में इन चुनिंदा धनिकों-ज्ञानियों के अलावा जिन संस्कृति के धार्मिक-सामाजिक महत्व को समझने और उसके अनुरूप संघ की प्रशासनिक व्यवस्था को सम्भालने में सक्षम कोई प्रबुद्ध समाज बंधु है ही नहीं! यदि है तो फिर क्यों सक्षम योग्य प्रबुद्धजनों का सहवरण कर संघ कार्यकारिणी में उन्हें नहीं लिया जा रहा है?
लगभग दो या तीन माह बाद ही समाज की एक अन्य संस्था श्री जैन श्वेताम्बर शिक्षा समिति के चुनाव होने हैं। यहां से निपट कर ये सभी कुर्सियों के दावेदार उधर कुर्सी पकड़ो अभियान में जोर आजमाइश करने की तैयारी में जुट जायेंगे। सालों से खरतरगच्छ समाज की संस्थाओं की बागडोर चंद पूंजीपतियों के आधीन है, ये दौलत वाले पदनाम बदल-बदल कर कभी इस और कभी उस संस्था पर कुण्डली मार कर बैठ जाते हैं। संस्थाओं में सदस्यता का मामला भी इन्ही की झोली में रहता है, कब किसे और क्यों? सदस्य बनाना है, इसका भी फैसला ये स्वंयभूं मठाधीश अपने हितों को ध्यान में रख कर तैय करते हैं। अब आप ही बतायें, हमारा यह कथन कि 'गई भैंस पानी में'! सही है या फिर इससे आगे भी कुछ ओर है!

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