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अवाम तमाशा देख रहा है राजनेताओं का!

श्रीमती वसुन्धरा राजे द्वारा राजस्थान की मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के एक पखवाड़ा बीत जाने के बाद भी राजस्थान में भाजपानीत श्रीमती वसुन्धरा राजे सरकार मंहगाई, जमाखोरी और कालाबाजारी से राजस्थान के अवाम को निजात दिलाने के मुद्दे पर कार्यवाही के बारे में सोच भी नहीं पाई है! लगता है जनता की इस पीड़ादायक समस्या पर सोचने के लिये श्रीमती वसुन्धरा राजे सरकार के पास फुरसत ही नहीं है।
राजस्थान विधानसभा चुनावों में रेकार्ड तीन चौथाई से ज्यादा बहुमत मिलने से अतिउत्साहित भाजपानीत श्रीमती वसुन्धरा राजे सरकार के पास राजस्थान में लोकसभा की ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने के लिये ग्यारह सूत्रीय-साठ दिवसीय कार्ययोजना (जिससे अवाम का कोई भला नहीं होने वाला) बनाने के लिये फुर्सत है, लेकिन अवाम के दु:खदर्दों पर मरहम लगाने की फुर्सत नहीं है।
मंहगाई ने अवाम की थाली से दाल-सब्जियां एक-एक कर गायब करना शुरू कर दिया है। जमाखोरों-कालाबाजारियों के खिलाफ सरकार द्वारा कार्यवाही नहीं किये जाने से साफ होने लगा है कि इन्हें सरकारी संरक्षण प्राप्त हो रहा है। नतीजन आम उपभोक्ता वस्तुओं की जमाखोरी कर कालाबाजारी में जुटे हैं। लेकिन सत्ताधीशों की आंखों पर लगता है नजले का पर्दा लगा है और कानों में कचरे का ढेर जमा है!
कचरे के ढेर शब्द से जयपुर महानगर की बर्बाद सफाई व्यवस्था का बेदर्द नजारा सामने पेश है। चाहे नगर निगम क्षेत्र हो या फिर जेडीए का इलाका हो! गली-मोहल्लों, कॉलोनी दर कॉलोनी कचरे के ढेरों ने अवाम का जीना हराम कर रखा है। अवाम की सेहत का तो लगता है अब सांई ही रखवाला है! जिनके जिम्मे शहर की सफाई व्यवस्था चाक चौबंद रखने की जुम्मेदारी  है, वे तो खुद ही भ्रष्टाचार की दलदल में फंसे हैं, उसमें से अगर अवाम के जूते के जोर पर निकलने के लिये मजबूर हो भी जायेंगे तो भी तबादलों की तलवार उनके सिर पर लटकी रहेगी और कमीशनखोर राजनेता अपने कमीशन के चक्कर में उन्हें भ्रष्टाचार की दलदल से निकलने नहीं देंगे। 
हमें यहां दिल्ली की केजरीवाल सरकार और आम आदमी पार्टी याद आ रही है। आज ही 'आप' की केजरीवाल सरकार को दिल्ली विधानसभा में विश्वास मत प्राप्त करना है। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस उनकी सरकार को गिराने का कुचक्र कर रहे हैं, बावजूद 'आप' की केजरीवाल सरकार ने बिजली-पानी की दरों में कटौती कर दी और कहा कि 'आप' की सरकार के गिरने से पहिले वे जनहित में काफी अहम फैसले लेंगे।
इधर राजस्थान में भाजपानीत वसुन्धरा राजे सरकार विधानसभा चुनावों में 183 सीटें हांसिल कर अर्थात तीन चौथाई से ज्यादा बहुमत प्राप्त करने के बाद भी राज्य की जनता के लिये कोई सार्थक निर्णय आजतक नहीं ले पाई! यहां तक कि शासन सचिवालय से बाहर निकलने की स्थिति में भी नजर नहीं आ रही है। विधानसभा का सत्र भी आगामी 21 जनवरी को आहूत किया गया है और इस संक्षिप्त सत्र में विधायकों को शपथग्रहण करने और कुछ आवश्यक प्रशासनिक एवं वित्तीय कामकाज के अलावा जनहित के कोई फैसले होने के फिलहाल कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं।
कुल मिला कर ट्रेडीशनल राजनीति ओर अवाम की राजनीति में फर्क अब साफ-साफ नजर आने लगा है! दिल्ली में जहां सत्ता की परवाह किये बगैर केजरीवाल जनहित में फैसले ले रहे हैं वहीं राजस्थान में भारी बहुमत से जीती भाजपानीत वसुन्धरा राजे सरकार आगामी लोकसभा में हार-जीत की गणित के मद्देनजर ग्यारह सूत्रीय 60 दिवसीय कार्यक्रम तैयार करने में जूटी है। बस अवाम किंकर्तव्यमूढ ठगा सा तमाशा देख रहा है राजनेताओं का!

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