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नगर निगम के अफसर कार्यवाही करने में बरत रहे हैं लापरवाही!

जयपुर (ओएनएस) मोटी चमड़ी वाले धन्ना सेठों, लैटर हैड के जरिये बने नेताओं ओर ऊपर की कमाई में लिप्त पार्षदों के इशारे पर गरीबों की थडियां उजाडऩे वाले जयपुर नगर निगम के अफसरों-कारिंदों को आखिरकार शर्म कब आयेगी?
दिल्ली बाईपास पर गैस गोदाम के पास कॉलोनी की विकास समिति के अध्यक्ष ने नजराना नहीं देने और पार्षद की हाजरी नहीं बजाने के चलते दो गरीबों की थडिय़ां हटाने वाले जयपुर नगर निगम के आयुक्त हवामहल जोन (पूर्व) इंद्रजीत सिंह और उनके अधीनस्थ हुक्कामों से सीधा सवाल है कि रद्युनाथ कॉलोनी जहां से दो थडिय़ों के अतिक्रमण हटाये उनके पास ही लगभग एक सौ से ज्यादा अवैध अस्थाई अतिक्रमण हैं, उन्हें क्यों नहीं हटाया? हुजूर!
राजस्थान नगर पालिका अधिनियम 1958 में रेग्यूलर लाइन ऑफ पब्लिक स्ट्रीट से सम्बन्धित प्रावधान है। रेग्यूलर लाइन ऑफ पब्लिक स्ट्रीट में पब्लिक स्ट्रीट के बायें और दायें छोरों की आउटर लाईन ऑफ पब्लिक स्ट्रीट में आने वाले सभी स्थायी या अस्थाई अतिक्रमण हटाने की जुम्मेदारी नगर निगम की है। लेकिन शर्मनाक स्थिति यह है कि एक स्वंयभूं नेताजी और पार्षद के कहने से दो थडिय़ों को तो हटा दिया गया और बाकी अतिक्रमणों को कायम रखा गया। आखिर क्यों?
अब जयपुर नगर निगम के भ्रष्ट और बेईमान अफसरों की दूसरी करतूत देखिये! नगर निगम के हवामहल जोन पूर्व के आधीन क्षेत्र चौकडी घाटगेट के भवन म्युनिसिपल नम्बर 4255, पुरानी कोतवाली का रास्ता में सारे नियम कानून कायदों को ताक में रख कर भवन मलिक ने गैर कानूनी तरीके से वाटर हार्वेस्टिंग की आड़ में बोरिंग खुदवा लिया। इजाजत तामीर की आड़ में लगभग 60 वर्गफुट सरकारी जमीन पर कब्जा कर लिया वहीं रेकार्ड के अनुसार जिस भवन का नक्क्षा पास हुआ है उसके स्वामित्व का रेकार्ड नगर निगम के दफ्तरों में है ही नहीं!
यही नहीं नक्क्षे पास करने से पूर्व इस जमीन का उपविभाजन/कंसोलीडेशन सम्पत्ति की खरीद के दस्तावेजों के मद्दे नजर नहीं किया गया। शर्मनाक स्थिति यह है कि हवामहल जोन पूर्व के हुक्कामों ने मामले को भवन अनुज्ञा एवं संकर्म समिति से भवन निर्माण स्वीकृति हेतु अपनी अभिशंशा, यह जानते हुए भिजवा दी कि भवन स्वामी ने नगर निगम में अपना स्वामित्व नामान्तरण नहीं करवाया है और न ही बकाया नगरीय विकास शुल्क, नामान्तरण शुल्क और उपविभाजन/कंसोलीडेशन शुल्क जमा नहीं करवाया गया, जिसके चलते जयपुर नगर निगम को लाखों रूपये का चूना लग गया।
भवन म्युनिसिपल नम्बर 4255 के मामले में एक गहरा पेंच यह भी है कि वर्ष 1982 में तत्कालीन भवन मालिकों ने तत्कालीन जयपुर नगर परिषद से इजाजत तामीर मांगी थी। मामला तीन साल तक नगर परिषद से कोर्ट तक चलता रहा बताया जाता है और भवन मालिकों को इजाजत तामीर नहीं मिली। लेकिन 28 फरवरी, 2011 को प्रकाश नारायण, श्याम नारायण और नन्दकिशोर ने अपने आप को मालिक बताते हुए इजाजत तामीर के लिये अर्जी लगाई। जबकि इससे पहिले इन्हें उपविभाजन/कंसोलीडेशन के लिये इजाजत से पहिले आवश्यक शुल्क जमा करा कर लेना चाहिये था। साथ ही जोन आयुक्त को भी स्वामित्व के दस्तावेजों की जांच कर भवन निर्माण स्वीकृति के लिये अनुशंशा करने से पहिले भवन का उपविभाजन/कंसोलीडेशन करवाने की कार्यवाही करना चाहिये था, जो नहीं की गई! नतीजन नगर निगम को इस प्रकरण में लाखों रूपये का चूना लग रहा है।
इसके साथ-साथ भवन म्युनिसिपल संख्या 4255 के कथित मालिकों ने लगभग 290 वर्गफुट अतिरिक्त जमीन पर भी गैर कानूनी कब्जा कर रखा बताया जाता है।
सूत्रों के अनुसार इस भवन म्युनिसिपल संख्या 4255 के खरीद के कागजात भी नगर निगम के रेकार्ड पर उपलब्ध नहीं है वही इजाजत तामीर की अनुशंशा करने से पहिले इस विवादास्पद जमीन की जयपुर नगर निगम स्तर पर कोई नापजोख भी नहीं की गई! सिर्फ नक्क्षे के आधार पर स्वीकृति जारी करने की अनुशांशा भवन अनुज्ञा एवं संकर्म समिति को भिजवा दिया गया, जोकि गैरकानूनी है।
प्रकरण में एक गम्भीर मुद्दा भी उजागर हुआ है। जब भवन मालिक को इजाजत तामीर जारी हो जाती है तो, उसकी जानकारी नगर निगम के सम्बन्धित जोन की भवन निर्माण शाखा के इंजीनियर को पासशुदा नक्क्षे की एक प्रति के साथ भिजवाई जाती है। भवन निर्माता जब निर्माण कार्य प्रारम्भ करता है तब वह भी नगर निगम के जोन की निर्माण शाखा के इंजीनियर को सूचना देता है। उसके बाद नगर निगम के इंजीनियर की देखरेख में भवन निर्माण शुरू होता है ताकि किसी तरह का हादसा न हो! लेकिन जहां तक भवन म्युनिसिपल संख्या 4255 का मामला है, सम्बन्धित दस्तावेज रेकार्ड प्रभारी ने आज तक भवन निर्माण शाखा के इंजीनियर को नहीं भिजवाये हैं।
अब उपरोक्त मुद्दों के परिपेक्ष्य में जयपुर नगर निगम के हवामहल जोन पूर्व के आयुक्त इंद्रजीत सिंह बतायें कि खामियां दर खामियां होने के बावजूद इस भवन मालिक के खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं की जा रही है?

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