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महोपाध्याय विनय सागर-कृतित्व-व्यक्तित्व!

13 अक्टूबर, 1929 (विक्रम संवत 1985) को जन्मे महोपाध्याय विनय सागर जैन संस्कृति के मूर्धन्य विद्वान हैं। साहित्याचार्य, साहित्य रत्न, जैन दर्शन शास्त्री एवं साहित्य महोपाध्याय होने के साथ-साथ महोपाध्याय, शास्त्र विशारदा एवं विद्वद्रत्न की उपाधियों से सम्मानित हैं।
महोपाध्याय विनय सागर की प्राकृत संस्कृत, अपभ्रंश, गुजराती सहित राजस्थान की कुछ भाषाओं (बोलियों) में विशेषज्ञता हांसिल है। वहीं उन्हें जैन दर्शन एवं उससे जुडी परम्पराओं का चहुंमुखी अनुभव और अध्ययन भी है।
विनय सागर ने एक सौ से ज्यादा पुस्तकों का लेखन/सम्पादन/अनुवाद किया है। अधिकांश प्रकाशित हो चुकी है, जिनमें नेमीदूतम, वृतमौक्तिकम्, राजस्थान का जैन साहित्य, धर्म शिक्षा प्रकणम्, विधिमार्ग प्रपा, प्रतिष्ठा लेख संग्रह, जिन वल्लभ सूरि ग्रंथावली, गौतमरास परिशीलन, खरतरगच्छ संघ का वृहद् इतिहास, आचारांग सूत्र (आयारांग सुत्त) का हिन्दी अनुवाद सहित उनकी एक विवादास्पद कृति नाकोडा तीर्थ श्री पाश्र्वनाथ भी है! जिस के अध्याय दो (2) में पाश्र्वनाथ के जन्म से लेकर देहान्त होने तक का विवरण मूलत: विवादास्पद है तथा 22वें तीर्थंकर नेमीनाथ और 23वें तीर्थंकर पाश्र्वनाथ से सम्बन्धित जो प्रमाणित इतिहास पिछले कुछ वर्षों में विश्वभर में उपलब्ध हुआ है, उसके भी विपरीत है। नाकोडा तीर्थ का प्रमाणित इतिहास प्रकाशित करने की मूलत: श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा तीर्थ कार्यसमिति ने पहल की थी, लेकिन विवादस्पद होने के कारण उन्होंने इसे प्रकाशित करने से इन्कार कर दिया था, जिसे बाद में जयपुर के कुशल संस्थान ने वर्ष 1988 में प्रकाशित किया था। हालांकि उनकी कृतियां नेमीदूतम्, वृतमौक्तिकम् राजस्थान और जोधपुर विश्वविद्यालय में एम.ए.संस्कृत के पाठ्यक्रम में रही है। विनय सागर को वर्ष 1986 में राजस्थान के शिक्षा विभाग ने सम्मानित भी किया था। यही नहीं मुंबई की राजधानी वेलफेयर सोसायटी ने भी विनय सागर को प्रतिष्ठित नाहर पुरस्कार से सम्मानित किया था। इसके अलावा उन्हें अन्य पुरस्कारों से भी नवाजा गया है। वर्तमान में महोपाध्याय विनय सागर प्राकृत भारती के प्रमुख हैं।
यह हकीकत है कि महोपाध्याय विनय सागर जैन संस्कृति के मूर्धन्य विद्वान हैं, उन्हें संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश भाषाओं में महारथ हांसिल है! वे भाषा और संस्कृति क्षेत्र में अपनी गहरी पकड़ रखते हैं, लेकिन उनके लेखन से यह स्पष्ट होता है कि जैन संस्कृति के इतिहास (खास कर ईसा पूर्व तीन हजार साल से ईसा पूर्व पांच हजार साल) जोकि ऋषभदेव से पाश्र्ववीर भट्ट (पाश्र्वनाथ) तक हमारे तीर्थंकरों का ऐतिहासिक कार्य क्षेत्र रहा है, के ऐतिहासिक महत्व एवं पूर्ण इतिहास पर उनकी पकड़ नहीं है। जैन संस्कृति से सम्बन्धित उनके लेखन में कहीं भी ऐतिहासिक प्रमाणों का उल्लेख नहीं होता है और न ही उन्होंने किया है, जबकि मल्लिकानाथ, नेमीनाथ और पाश्र्ववीर भट्ट के समयकाल के ऐतिहासिक प्रमाण राष्ट्रीय ही नहीं, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी उपलब्ध हैं।
वैसे यह हकीकत है कि जैन धर्म (वास्तव में जैन संस्कृति) से सम्बन्धित लेखन में महोपाध्याय विनय सागर का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उनका कृतित्व-व्यक्तित्व प्रेरणादायक और पथ प्रदर्शक है।

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