पिछले 25 सालों की लम्बी जद्दोजहद और संघर्ष के बाद जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा मिल सका है और इस संघर्ष में जैन समुदाय के ज्ञात और अज्ञात सभी संघर्षशील समाज सेवकों को धन्यवाद दिया जाना जैन समुदाय का नैतिक दायीत्व ही नहीं कर्तव्य भी है।
जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक अधिकार मिलने से इस समुदाय के पूंजीपति-सरमायेदार और इनके पिछलग्गू जरूरत से ज्यादा हो हल्ला कर रहे हैं। क्योंकि अपने आप को समाज का मुखिया आरोपित कर सरकारी हुक्कामों से सांठगांठ कर अपने निजी आर्थिक व्यवसायिक स्वार्थों की पूर्ति करवाने की इनकी करतूतों को विराम लगेगा और इनकी दुकानदारियां सिमटना लगभग तैय है।
जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा मिलने से जो फायदे होने वाले हैं, भ्रम फैला कर उन्हें छुपाने की इनकी साजिश भी अब धीरे-धीरे उजागर होने लगी है। आज जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा मिलने से यह समाज संविधान के अनुच्छेद 25 और 30 में प्रदत्त अधिकार प्राप्त करने का अधिकारी हो गया है। जैन संस्कृति को अक्षुण्ण रखने के लिये सुरक्षा का अधिकार, व्यापार के लिये कम ब्याज पर ऋण और सब्सीडी, युवाओं को रोजगार, जैन समुदाय के छात्र-छात्राओं के प्राथमिक से उच्च शिक्षा तक के लिये छात्रवृति, जैन शिक्षण संस्थाओं में समाज के बच्चों के लिये 50 प्रतिशत आरक्षण, उच्च शिक्षा में आरक्षण एवं शिक्षा हेतु ऋण के साथ-साथ जैन समुदाय के धार्मिक स्थलों का नियन्त्रण समाज के हाथ में प्राप्त होना, जैन धार्मिक और शैक्षणिक संस्थानों में सरकारी हस्तक्षेप न्यूनतम होना, जैन धार्मिक स्थलों, पुरा सम्पदाओं को सुरक्षित रखने का समाज को अधिकार, जैन धार्मिक स्थलों को अधिग्रहण से मुक्ति, जैसे कई अधिकार जैन समुदाय को मिलेंगे।
सबसे महत्वपूर्ण स्थिति यह रहेगी कि जैन समुदाय के इतिहास, सांस्कृतिक विधाओं को अक्षुण्ण रखने के लिये जैन इतिहास अकादमी, जैन संस्कृति अकादमी जैसे महत्वपूर्ण संस्थानों की स्थापना है। इससे जैन संस्कृति एवं इतिहास का शोध हो सकेंगे और जैन समुदाय के प्राचीन इतिहास और हमारे सांस्कृतिक वैभव से हमारा समाज रूबरू हो सकेगा और सामाजिक चेतना जाग्रत होने से जैन समाज का तेजी से विकास होना सम्भव हो सकेगा।
वक्त है अपने स्वार्थों में लिप्त जैन समुदाय का पूंजीपति वर्ग अपने स्वार्थों को दरकिनार कर समाज हित में अपने दायीत्वों का निर्वहन करेगा!
जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक अधिकार मिलने से इस समुदाय के पूंजीपति-सरमायेदार और इनके पिछलग्गू जरूरत से ज्यादा हो हल्ला कर रहे हैं। क्योंकि अपने आप को समाज का मुखिया आरोपित कर सरकारी हुक्कामों से सांठगांठ कर अपने निजी आर्थिक व्यवसायिक स्वार्थों की पूर्ति करवाने की इनकी करतूतों को विराम लगेगा और इनकी दुकानदारियां सिमटना लगभग तैय है।
जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा मिलने से जो फायदे होने वाले हैं, भ्रम फैला कर उन्हें छुपाने की इनकी साजिश भी अब धीरे-धीरे उजागर होने लगी है। आज जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा मिलने से यह समाज संविधान के अनुच्छेद 25 और 30 में प्रदत्त अधिकार प्राप्त करने का अधिकारी हो गया है। जैन संस्कृति को अक्षुण्ण रखने के लिये सुरक्षा का अधिकार, व्यापार के लिये कम ब्याज पर ऋण और सब्सीडी, युवाओं को रोजगार, जैन समुदाय के छात्र-छात्राओं के प्राथमिक से उच्च शिक्षा तक के लिये छात्रवृति, जैन शिक्षण संस्थाओं में समाज के बच्चों के लिये 50 प्रतिशत आरक्षण, उच्च शिक्षा में आरक्षण एवं शिक्षा हेतु ऋण के साथ-साथ जैन समुदाय के धार्मिक स्थलों का नियन्त्रण समाज के हाथ में प्राप्त होना, जैन धार्मिक और शैक्षणिक संस्थानों में सरकारी हस्तक्षेप न्यूनतम होना, जैन धार्मिक स्थलों, पुरा सम्पदाओं को सुरक्षित रखने का समाज को अधिकार, जैन धार्मिक स्थलों को अधिग्रहण से मुक्ति, जैसे कई अधिकार जैन समुदाय को मिलेंगे।
सबसे महत्वपूर्ण स्थिति यह रहेगी कि जैन समुदाय के इतिहास, सांस्कृतिक विधाओं को अक्षुण्ण रखने के लिये जैन इतिहास अकादमी, जैन संस्कृति अकादमी जैसे महत्वपूर्ण संस्थानों की स्थापना है। इससे जैन संस्कृति एवं इतिहास का शोध हो सकेंगे और जैन समुदाय के प्राचीन इतिहास और हमारे सांस्कृतिक वैभव से हमारा समाज रूबरू हो सकेगा और सामाजिक चेतना जाग्रत होने से जैन समाज का तेजी से विकास होना सम्भव हो सकेगा।
वक्त है अपने स्वार्थों में लिप्त जैन समुदाय का पूंजीपति वर्ग अपने स्वार्थों को दरकिनार कर समाज हित में अपने दायीत्वों का निर्वहन करेगा!





