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अल्पसंख्यकों के संदर्भ में!

चंद्रप्रभ ध्यान निलयम के जरिये प्राप्त मुनि चंद्रप्रभ सागर और ललितप्रभ सागर के सवालों के जवाब!

जयन्त कुमार जैन

हमें पिछले दिनों चंद्रप्रभ ध्यान निलयम सम्बोधिधाम से जिज्ञासापूर्ण पांच सवाल ई-मेल के जरिये प्राप्त हुए हैं। हम सम्बोधिधाम  से मिले इन पांचों सवालों का जवाब नीचे दे रहे हैं-
प्रश्र-1. अभी तक पूरा जैन समाज अल्पसंख्यकता का अर्थ भलीभाँति नहीं समझता है। हम स्वयं भी इस संदर्भ में पूरे अनभिज्ञ हैं।
उत्तर- यह सही नहीं है! अधिसंख्यक जैन समाज खास कर शिक्षित वर्ग अल्पसंख्यक शब्द का सही अर्थ समझता है। अल्पसंख्यक शब्द स्पष्ट का अर्थ है कि संख्या में कम होना! भारत गणतंत्र की सवा सौ करोड़ की आबादी में हमारी आबादी महज पचास लाख से भी कम है। आज हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध और पारसी समुदाय की आबादी हमारी जनसंख्या से ज्यादा है। एक ओर इन समुदायों की संख्या बढ़ रही है वहीं हमारी आबादी की संख्या घट रही है और जैसी कि आशंका है, 26वीं शताब्दी तक जैन समुदाय विलुप्त होकर लोकायतन और चार्वाक की तरह सिर्फ इतिहास के पन्ने पर दर्ज होकर रह जायेगा!
जहां तक मुनि चंद्रप्रभ सागर और मुनि ललितप्रभ सागर और इनके ध्यान निलयम का सवाल है, हम इनके लिये सिर्फ इतना ही कह सकते हैं कि इन्हें जैन संस्कृति के इतिहास के बारे में शून्य से अधिक जानकारी नहीं है। खेद इस बात का भी है कि इन्होंने कभी जिन संस्कृति (जैन संस्कृति) के इतिहास के बारे में अध्ययन करने का सोचा तक नहीं है। अगर मुनिद्वय इस बारे में अध्ययन करने का मानस बनाते तो जैन समुदाय के इतिहास के पन्नों में वह सबकुछ पाते, जिनके बारे में वे आज भी अनभिज्ञ हैं।
प्रश्न-2. साधु-साध्वी भगवंतों को भी इस मुद्दे को अच्छी तरह समझाया जाए। जैन समाज गुरुमहाराजों की प्रेरणा से काम करता है। अगर वे इसके समर्थन में आएंगे, प्रवचनों में यह मुद्दा उठाएंगे तभी कुछ जागृति आ सकती है।
उत्तर- जहां तक जैन समुदाय को भारत गणतंत्र में अल्पसंख्यक का दर्जा दिये जाने का सवाल है, मुनि चंद्रप्रभ सागर और मुनि ललितप्रभ सागर ने पिछला चातुर्मास जयपुर में ही किया था। हमने उनसे मुलाकात भी की थी, लेकिन वे इस मुद्दे पर सोचने के लिये भी शायद तैयार नहीं थे। हम उन्हें यह भी जानकारी दे दें कि उन्होंने जिन मुनि तरूण सागर के साथ एसएमएस इन्वेस्टमेंट ग्राउण्ड में प्रवचनों में शिरकत की थी उनके गुरू आचार्य पुष्पदंत जी ने अपने जयपुर प्रवास के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अपने प्रवचन स्थल पर आमंत्रित कर जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा दिलवाने के लिये कहा था। अत: हमारे मुनिद्वय का यह कथन सही नहीं है कि साधु-साध्वियों को इस मुद्दे पर जानकारी नहीं है। अधिकांश दिगम्बर जैन साधु-साध्वियां जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा दिलवाने के लिये मुखर हैं। कुछ साधु-साध्वियां जो हिन्दूवादी जैन पूंजीपतियों के इशारे पर चलते हैं, वे जरूर चुप हैं या विरोध में हैं। जिनका आम दिगम्बर-श्वेताम्बर समुदाय पर कोई ज्यादा प्रभाव भी नहीं है।
प्रश्न-3. सभी दृष्टियों से यथा-पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनैतिक, भौगोलिक, इसके क्या लाभ-हानियाँ हो सकती है इस पर विस्तार से लिखा जाए।
उत्तर-हमें इस बात का खेद है कि- मुनि चंद्रप्रभ सागर और ललितप्रभ सागर चूंकि जैन संस्कृति के ऐतिहासिक पहलुओं की जानकारी शून्य से ज्यादा नहीं रखते हैं, क्योंकि वे मात्र कर्मकाण्डी धर्म से ही सम्बन्ध रखते हैं! ऐसी स्थिति में जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जे से सम्बन्धित जानकारियां उन्हें नहीं होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। लेकिन अपने जयपुर प्रवास के दौरान मुनिद्वय अपनी इस जिज्ञासा पर विभिन्न विद्वजनों से चर्चा करते तो उन्हें ढेर सारी विस्तृत जानकारियां प्राप्त हो सकती थी। फिर भी हम उन्हें संक्षिप्त में बता दें कि जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा प्राप्त होने के बाद जैन छात्र/छात्राओं को अल्पसंख्यक के नाते प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक छात्रवृतियां मिलने के रास्ते खुलेंगे। जैन शिक्षण संस्थाओं सरकारी लालफीताशाही से मुक्ति मिलेगी। जैन शिक्षण संस्थाओं में जैन समुदाय के छात्र-छात्राओं को सांस्कृतिक, सामाजिक, इतिहास के अध्ययन हेतु सुविधायें प्राप्त होंगी। जैन समाज के शिक्षित/अल्पशिक्षित और टैक्निकल रूप से शिक्षित युवाओं को अपना रोजगार स्थापित करने के लिये सरकारी सहायता एवं ऋण प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होगा। जैन समुदाय की सामाजिक एवं सांस्कृतिक परम्पराओं, इतिहास, संस्कृति को अक्षुण्ण रखने के लिये राज्य सरकार के स्तर से अनिवार्य रूप से जैन सांस्कृतिक अकादमी स्थापित करने के लिये मार्ग प्रशस्त होगा। जैन समुदाय की सांस्कृतिक-धार्मिक धरोहरों को अक्षुण्ण रखने के लिये भारत गणतंत्र के संविधान में उल्लेखित तरीके से अनिवार्य शासकीय संरक्षण मिलेगा। जैन समुदाय के सांस्कृतिक-सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों में अनावश्यक सरकारी हस्तक्षेप पर रोक लगेगी।
चंद्रप्रभ ध्यान निलायम के जरिये हमारे मुनिद्वय का एक सवाल यह है भी है कि अगर जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा मिला तो उससे क्या हानि-लाभ हो सकते हैं? सवाल निहायत ही बेतुका है! फिर भी हम उन्हें बताना चाहते हैं कि मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश, असम, पंजाब, महाराष्ट्र, दिल्ली, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, झारखण्ड और पश्चिम बंगाल सहित 13 राज्यों में जैन समुदाय अल्पसंख्यक घोषित किये जा चुके हैं, तमिलनाडू और राजस्थान में मामला तकनीकी आधार पर अटका हुआ है। इन राज्यों में से एक राज्य में भी जैन समुदाय को कोई परेशानी नहीं है और समाज  बन्धु सरकारी छूट ओर संरक्षण का लाभ ले रहे हैं। ये जानकारी अगर मुनिद्वय को नहीं है तो जुम्मेदार कौन है?
हां, एक बात गम्भीरता से ध्यान देने योग्य है! पिछले 50 सालों में जैन समुदाय की जनसंख्या घटती ही जा रही है। देश में सबसे कम जनसंख्या पारसियों की रही है और उससे ऊपर बौद्ध समुदाय की। लेकिन इन दोनों समुदायों की जनसंख्या भी अब जैन समुदाय से ज्यादा हो गई है और जैन समुदाय आबादी के औसत के हिसाब से सबसे नीचे की पायदान पर आ गया है। समाज में पुरूषों के अनुपात में महिलाओं की संख्या घटकर 86 ही रह गई है। सौ पुरूषों के मुकाबले 86 महिलाओं के कारण विषम सामाजिक स्थितियां पैदा हो गई है। समाज के अगड़ों-आगेवानों की इस समस्या के निराकरण में कोई दिलचस्पी नहीं है। वे तो अपनी पकड़ सामाजिक संगठनों-ट्रस्टों पर मजबूत रखना चाहते हैं ताकि उनके निजी काम आसानी से हल हो सकें। दरअसल ये पूंजीपति-सरमायेदार और उनके भ्रष्टाचारी पिछलग्गू ही समाज की उन्नति में बाधक हैं। जबतक इनका सामाजिक संगठनों में से पत्ता साफ नहीं होगा, जैन समाज पराभव-अवनति के रास्ते पर रहेगा! यह बात भी स्पष्ट है कि अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त होने के बाद जैन समुदाय को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं होने वाला है।
आखीर में हम मुनिद्वय की जानकारी में ला दें कि जैन समुदाय अल्पसंख्यक का संवैधानिक दर्जा प्राप्त करने के लिये देशभर में जाग्रत हो चुका है। केंद्र सरकार पर पूरा दबाव है कि वह राष्ट्रीय स्तर पर जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का संवैधानिक राष्ट्रीय दर्जा प्रदान करे। अगर मुनिद्वय भी, जैन समुदाय के द्वारा अल्पसंख्यक का राष्ट्रीय दर्जा प्राप्त करने के लिये जो संघर्ष की अग्रि प्रज्वलित की है उसमें अपना योगदान देना चाहते हैं तो शुरू करें अपनी मुहिम सम्बोधि धाम से ही और प्रयास करें कि वे इस संघर्ष की अग्रिम पंक्ति में नजर आयें।

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