राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के स्थापना दिवस समारोह में योगीराज कृष्ण को लेकर मुनि तरूण सागर द्वारा अपने प्रवचन के दौरान जो कुछ कहा गया उससे नाराज संतों-महंतों का प्रतिनिधि मण्डल फिर जा धमका मुनि तरूण सागर के पास! आखीरकार प्रतिनिधि मण्डल की नाराजगी पर उन्हें कहना पड़ा कि वे अपने शब्द वापस लेते हैं।
चार्तुमास अवधि में मुनि तरूण सागर ने तीसरी बार अपने प्रवचनों के अनावश्यक रूप से समाज के विभिन्न तबकों में नाराजगी फैलाई! पहिले ज्योतिषियों को लेकर अपनी अज्ञानता उजागर की! उसके बाद जैन समुदाय को शाहकारी और मांसहारी में बांटने का बेतुका प्रयास किया और अब योगीराज कृष्ण पर टिप्पणी कर डाली।
दरअसल अपने कड़वे प्रवचनों पर दम्भ भरने वाले मुनि तरूण सागर का संस्कृति के इतिहास के बारे में ज्ञान शायद शून्य से ज्यादा नहीं है। वे प्रवचनभट्ट हो सकते हैं, लेकिन उन्होंने कभी जिन संस्कृति के इतिहास का अध्ययन ही नहीं किया है। अगर जिन संस्कृति के इतिहास का अध्ययन किया होता तो वे अपने प्रवचन रूपी पाखण्ड को छोड़ कर जैन समुदाय की प्रगति के लिये पूरी ताकत से जुट जाते।
श्वेताम्बर-दिगम्बर एकता का पाखण्ड रचने से पहिले अगर मुनि तरूण सागर, जैन समुदाय के पिछले पांच हजार सालों के क्रान्तिकारी इतिहास का गहराई से अध्ययन कर लेते तो फिर वे इस तरह के पाखण्ड की नौटंकी भी नहीं करते।
सवाल यह भी उठता है कि मुनि तरूण सागर के श्वेताम्बर-दिगम्बर एकता के पाखण्ड की नौटंकी में ज्योतिषी, शाकहारी-मांसहारी और योगीराज कृष्ण कहां से आ टपके? उनकी जैन एकता की पाखण्डपूर्ण नौटंकी से इनका क्या लेना देना!
मुनि तरूण सागर के प्रवचनों से जैन एकता न तो मजबूत हुई है और न ही जैन समुदाय में कोई जाग्रति आई है। बल्कि जैन समाज में नाराजगीपूर्ण बेचैनी जरूर पैदा हुई है।
उम्मीद की जानी चाहिये कि मुनि तरूण सागर अपनी वाणी पर संयम रखेंगे। क्योंकि अपनी बेतुकी वाणी के कारण ही इन्हें पुलिस प्रोटेक्शन की जरूरत पड़ रही है। जयपुर में श्वेताम्बर और दिगम्बर समुदाय के लगभग डेढ़ सौ से ज्यादा साधु-साध्वियां, जिनमें से कई आचार्य एवं उपाध्याय हैं, विचरण कर रहे हैं और एक भी साधु-साध्वी ने पुलिस प्रोटेक्शन नहीं मांगा है। मुनि तरूण सागर ने ही क्यों ओटोमेटिक हथियारों से लैस पुलिस प्रोटेक्शन ले रखा है। लगता है कुछ खामियां मुनि तरूण सागर में ही हो सकती है और मुनि जी को अपनी खामियों को दुरूस्त कर ही लेना चाहिये।
चार्तुमास अवधि में मुनि तरूण सागर ने तीसरी बार अपने प्रवचनों के अनावश्यक रूप से समाज के विभिन्न तबकों में नाराजगी फैलाई! पहिले ज्योतिषियों को लेकर अपनी अज्ञानता उजागर की! उसके बाद जैन समुदाय को शाहकारी और मांसहारी में बांटने का बेतुका प्रयास किया और अब योगीराज कृष्ण पर टिप्पणी कर डाली।
दरअसल अपने कड़वे प्रवचनों पर दम्भ भरने वाले मुनि तरूण सागर का संस्कृति के इतिहास के बारे में ज्ञान शायद शून्य से ज्यादा नहीं है। वे प्रवचनभट्ट हो सकते हैं, लेकिन उन्होंने कभी जिन संस्कृति के इतिहास का अध्ययन ही नहीं किया है। अगर जिन संस्कृति के इतिहास का अध्ययन किया होता तो वे अपने प्रवचन रूपी पाखण्ड को छोड़ कर जैन समुदाय की प्रगति के लिये पूरी ताकत से जुट जाते।
श्वेताम्बर-दिगम्बर एकता का पाखण्ड रचने से पहिले अगर मुनि तरूण सागर, जैन समुदाय के पिछले पांच हजार सालों के क्रान्तिकारी इतिहास का गहराई से अध्ययन कर लेते तो फिर वे इस तरह के पाखण्ड की नौटंकी भी नहीं करते।
सवाल यह भी उठता है कि मुनि तरूण सागर के श्वेताम्बर-दिगम्बर एकता के पाखण्ड की नौटंकी में ज्योतिषी, शाकहारी-मांसहारी और योगीराज कृष्ण कहां से आ टपके? उनकी जैन एकता की पाखण्डपूर्ण नौटंकी से इनका क्या लेना देना!
मुनि तरूण सागर के प्रवचनों से जैन एकता न तो मजबूत हुई है और न ही जैन समुदाय में कोई जाग्रति आई है। बल्कि जैन समाज में नाराजगीपूर्ण बेचैनी जरूर पैदा हुई है।
उम्मीद की जानी चाहिये कि मुनि तरूण सागर अपनी वाणी पर संयम रखेंगे। क्योंकि अपनी बेतुकी वाणी के कारण ही इन्हें पुलिस प्रोटेक्शन की जरूरत पड़ रही है। जयपुर में श्वेताम्बर और दिगम्बर समुदाय के लगभग डेढ़ सौ से ज्यादा साधु-साध्वियां, जिनमें से कई आचार्य एवं उपाध्याय हैं, विचरण कर रहे हैं और एक भी साधु-साध्वी ने पुलिस प्रोटेक्शन नहीं मांगा है। मुनि तरूण सागर ने ही क्यों ओटोमेटिक हथियारों से लैस पुलिस प्रोटेक्शन ले रखा है। लगता है कुछ खामियां मुनि तरूण सागर में ही हो सकती है और मुनि जी को अपनी खामियों को दुरूस्त कर ही लेना चाहिये।





