राजस्थान की भाजपानीत वसुन्धरा राजे सरकार गुडगर्वनेंस के अपने दावे से पलट कर मिशन-25 के पतले गलियारे में पहुंच गई है। पिछले दो महिनों में सरकार सिर्फ घोषणाओं में जुटी है। उसका एक मात्र लक्ष्य यह रह गया है कि किसी भी तरह लोकसभा चुनावों में भाजपा को पूरी पच्चीस सीटों पर विजय मिल जाये। अपनी इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य को पाने के लिये जुटी वसुन्धरा राजे एवं उनकी केबीनेट के मंत्रियों का आम अवाम की पीड़ा से सम्बन्धित मुद्दों पर एक ही रटा-रटाया जवाब है कि अभी अवाम भाजपा के मिशन-25 को सफल बनाने में जुटे और अवाम के दु:खदर्दों से सम्बन्धित मुद्दों पर लोकसभा चुनावों के बाद ही कार्यवाही की जायेगी।
उधर जमाखोरी-कालाबाजारी और मुनाफाखोरी रोकने के दावे भी टांय-टांय फिस्स हो गये हैं। जमाखोरी-कालाबाजारी और मुखाफाखोरी रोकने के लिये पिछले दिनों विघानसभा में पारित करवाया गया राजस्थान माल (उत्पादन, प्रदाय, वितरण, व्यापार और वाणिज्य नियन्त्रण) विधेयक-2014 भी जमाखोरों, कालाबाजारियों और मुनाफाखोरों पर लगाम लगाने में नाकाम रहा है। शर्मनाक स्थिति तो यह रही कि इस कानून के क्रियाशील होने के बाद आम उपभोक्ता वस्तुओं की कालाबाजारी और मुनाफाखोरी तो जारी है ही, बजरी तक के दामों में भी इजाफा हो गया। चूंकि आवश्यक उपभोक्ता वस्तु अधिनियम-1955 और राजस्थान माल विधेयक-2014 से लैस राजस्थान सरकार शर्मनाक तरीके से राज्य में कालाबाजारी, जमाखोरी और मुनाफाखोरी को रोकने में पूरी तरह से विफल रही है और पीडि़त अवाम में वसुन्धरा राजे सरकार के खिलाफ गहरा जनआक्रोश पनपता जा रहा है।
भाजपा इस बात से खुश है कि राजस्थान में गैर भाजपा-गैर कांग्रेसी गठबंधन का कुछ लोकसभा सीटों को छोड़ कर, कोई वजूद नहीं है। राजस्थान की लगभग 22 सीटों पर यह गठबंधन सिर्फ वोट काटू गठबंधन ही साबित होने जा रहा है। ये वोट भी वह सिर्फ कांग्रेस पार्टी के ही काटेगा। नतीजन फायदा भाजपा को ही मिलनेवाला है।
उधर विधानसभा चुनावों में करारी हार के बाद कांग्रेसी नेता दड़बों में घुसे अपने घाव सहला रहे हैं। उन्हें आम कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के बीच जाने से डर लग रहा है कि कहीं नाराज आम कार्यकर्ता उनकी फजीहज करेंगे तो फिर क्या होगा?
इन कांग्रेसी नेताओं को अपने अतीत से भी सबक लेना नहीं आता है। इमर्जेंसी खत्म होने के तुरंत बाद हुए चुनावों में कांग्रेस की करारी हार हुई थी। चौधरी चरणसिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में इंदिरा गांधी को जेल भेज दिया गया था। उस दौरान कुछ नेताओं ने पार्टी में जोश फूंका और अगली सरकार इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की बनी थी।
क्या राजस्थान में आज एक भी कांग्रेसी नेता नहीं है जो अपनी पार्टी के आम कार्यकर्ताओं की निराशा को फटकार कर उनमें जोश फूंक सके। जो नेता अपने कार्यकर्ताओं में जोश नहीं फूंक सकता, उसे पार्टी से इस्तीफा देकर राजनीति से सन्यास ले लेना चाहिये। वैसे भी चूडियां पहन कर घर में बैठने से तो अच्छा है कि कांग्रेसी नेता फील्ड में आयें, संघर्ष करें और जरूरत पड़े तो शहीद भी हों?
अब देखना यही है कि भाजपा, कांग्रेस और गैर भाजपा-गैर कांग्रेस गठबंधन राजस्थान में कितने और कहां तक खरे उतरते हैं।
उधर जमाखोरी-कालाबाजारी और मुनाफाखोरी रोकने के दावे भी टांय-टांय फिस्स हो गये हैं। जमाखोरी-कालाबाजारी और मुखाफाखोरी रोकने के लिये पिछले दिनों विघानसभा में पारित करवाया गया राजस्थान माल (उत्पादन, प्रदाय, वितरण, व्यापार और वाणिज्य नियन्त्रण) विधेयक-2014 भी जमाखोरों, कालाबाजारियों और मुनाफाखोरों पर लगाम लगाने में नाकाम रहा है। शर्मनाक स्थिति तो यह रही कि इस कानून के क्रियाशील होने के बाद आम उपभोक्ता वस्तुओं की कालाबाजारी और मुनाफाखोरी तो जारी है ही, बजरी तक के दामों में भी इजाफा हो गया। चूंकि आवश्यक उपभोक्ता वस्तु अधिनियम-1955 और राजस्थान माल विधेयक-2014 से लैस राजस्थान सरकार शर्मनाक तरीके से राज्य में कालाबाजारी, जमाखोरी और मुनाफाखोरी को रोकने में पूरी तरह से विफल रही है और पीडि़त अवाम में वसुन्धरा राजे सरकार के खिलाफ गहरा जनआक्रोश पनपता जा रहा है।
भाजपा इस बात से खुश है कि राजस्थान में गैर भाजपा-गैर कांग्रेसी गठबंधन का कुछ लोकसभा सीटों को छोड़ कर, कोई वजूद नहीं है। राजस्थान की लगभग 22 सीटों पर यह गठबंधन सिर्फ वोट काटू गठबंधन ही साबित होने जा रहा है। ये वोट भी वह सिर्फ कांग्रेस पार्टी के ही काटेगा। नतीजन फायदा भाजपा को ही मिलनेवाला है।
उधर विधानसभा चुनावों में करारी हार के बाद कांग्रेसी नेता दड़बों में घुसे अपने घाव सहला रहे हैं। उन्हें आम कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के बीच जाने से डर लग रहा है कि कहीं नाराज आम कार्यकर्ता उनकी फजीहज करेंगे तो फिर क्या होगा?
इन कांग्रेसी नेताओं को अपने अतीत से भी सबक लेना नहीं आता है। इमर्जेंसी खत्म होने के तुरंत बाद हुए चुनावों में कांग्रेस की करारी हार हुई थी। चौधरी चरणसिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में इंदिरा गांधी को जेल भेज दिया गया था। उस दौरान कुछ नेताओं ने पार्टी में जोश फूंका और अगली सरकार इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की बनी थी।
क्या राजस्थान में आज एक भी कांग्रेसी नेता नहीं है जो अपनी पार्टी के आम कार्यकर्ताओं की निराशा को फटकार कर उनमें जोश फूंक सके। जो नेता अपने कार्यकर्ताओं में जोश नहीं फूंक सकता, उसे पार्टी से इस्तीफा देकर राजनीति से सन्यास ले लेना चाहिये। वैसे भी चूडियां पहन कर घर में बैठने से तो अच्छा है कि कांग्रेसी नेता फील्ड में आयें, संघर्ष करें और जरूरत पड़े तो शहीद भी हों?
अब देखना यही है कि भाजपा, कांग्रेस और गैर भाजपा-गैर कांग्रेस गठबंधन राजस्थान में कितने और कहां तक खरे उतरते हैं।